जब 30 गेंदो पर 30 रन चाहिए थे अफ्रिका को..

जब 30 गेंदो पर 30 रन चाहिए थे अफ्रिका को.. यकिनन हम करोड़ो हिन्दुस्तानियों के मुंह लटक गये थे। मुझे भी लगा था कि अब कोई मतलब नहीं.. सो जाना चाहिए।

हम देख रहे थे कि लम्बे कद और छोटी छोटी आंखो वाला वो क्लासेन, तानसेन की तरह गेंद के सुर को उपर उठा उठाकर “जीतराग” गाये जा रहा था। रुक ही नहीं रहा.. 
पक्का ये अकेला ही हमें चलता कर देगा।
 
अक्षर के उस ओवर ने अपने शर्मा जी के जिद्दी छोरे को नाखून कुतरने पर मजबूर कर दिया… इस बार भी गयी ट्राफी.. बाउण्ड्री पार .. फाईनल हारने का दुख भी ऊंचे दर्जे का होता है। 

सो मेरी तरह लाखों लोगों ने टीवी बन्द करके बिस्तर में ही करवटें लेने का विचार किया। पर क्रिकेट नशा है.. हम एक ओवर और देखते देखते पूरा मैच देख लेते है। 

मैदान पर जब क्लासेन के शरीर में जूझारजी की आत्मा नाच रही थी तब उधर अफ्रीकन खेमे में जश्न की तैयारियां शुरू हो गयी थी। हमारा डर विश्वास में बदल रहा था कि आज हम निश्चित हार जायेगें।

उस वक्त तक किसी को भी अन्दाजा नहीं था कि पूरा हिन्दुस्तान आधे घंटे बाद आठ आठ हाथ उछलने वाला है।
अपने शर्मा जी का छोरा अमरिका-वेस्टइंडीज (बारबाडोस) के इस मैदान पर झण्डा गाढने वाला है।

जुझारू खिलाड़ियों ने एक जुट होकर जुझारजी को चलता किया .. कलासेन सलट गया, मैच पलट गया।
 
गजब का मैच था। इतना रोमांच.. वाह.. वो आखिरी चार ओवर.. बूम बूम तो खैर बूम है ही, लेकिन हार्दिक और सरदार जी ने बुमराह के साथ मिलकर अफ्रिका का जो सामान बांधा .. वो याद रहेगा।

इस युद्ध के अंत में भारत को शक्तिबाण लगा .. संजीवन बूटी लाये सूर्या.. मैच में वो कैच जिसने भी देखा, वो धन्य है। इतने दबाव में सूर्या का वो शारीरिक और मानसिक संतुलन.. बल्ले से ज्यादा हल्ला कर गया… वहीं जीत गया था इण्डिया। 

लब्बोलुआब, लाजवाब मैच था। मैच के बाद सोशल मिडिया से लेकर सड़को तक जो सेलिब्रेशन था.. वो बारिश मे छपाछप नहाने के बाद गर्मागर्म पकौड़ो के आनन्द जैसा.. खाते ही रहो... 

सालों बाद मिली इस ट्राफी का जश्न अभी चलता रहेगा। देशवासियों और क्रिकेट प्रेमियों को खूब खूब बधाई .. वन्देमातरम.. जय हिंद..जय भारत।

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